Saturday, December 6, 2008

अकाश की गुरू दक्षिणा


    बात उस समय की है जब आज की तरह स्कूल नहीं होते थे । उन दिनों गुरूकुल हुआ करता था । उनमें पढ़ाने वालों को आचार्य या गुरू कहा जाता था । उसी नाम के एक गुरूकुल में एक बालक पढ़्ता था । वह बहुत गरीब था । जब उस की पढ़ाई समाप्त हुई तो उसके पास गुरू दक्षिणा देने को कुछ नहीं था ।उस समय वह बहुत रोया उसने कहा कि वह गुरू दक्षिणा नही दे सकता उसने वादा किया कि मैं गुरू दक्षिणा ज़रूर दूंगा। जल्दी ही कुछ दिन के बाद एक अन्य गुरू कुल मे एक ्प्रतियोगिता हुई उसने भी उस प्रतियोगिता मैं हिस्सा लिआ वह उस प्रतियोगिता मे जीत गया ।जब जितने वालों को सार्वजनिक सम्मान दिया जाना था तो उस समय गुरूकुल के सभी आचार्यों को भी बुलाया गया। उस समय उस गरीब छात्र के गुरुजी भी वहाँ आये । जिनसे उस गरीब ने वादा किया था कि मैं गुरू दक्षिणा ज़रूर दूगां । तब जज ने उस गरीब छात्र से पूछा कि तुमने इतनी अच्छी शिक्षा किस से सीखी है । तो उसने अपने गुरु जी की ओर इशारा करते हुए कहा कि उसने उन आचार्य जी से सीखा है। तब जज ने उस छात्र के गुरू को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया और उन के छात्र की भी बहुत प्रशंसा की।उस समय आचार्य ने कहा कि--" मेरे इस होनहार छात्र ने मुझ से गुरू दक्षिणा देने का वादा किया था। मुझे खुशी है कि आज मुझे यह सम्मान दिला कर अपनी गुरु दक्षिणा वादे के अनुसार आज चुका दी।"


    शिक्षा- सुयोग्य छात्र अपने ज्ञान तथा विद्वता से अपने गुरु का मान बढ़ातें हैं ।



    3 comments:

    Arvind Gaurav December 31, 2008 at 1:19 AM  

    BAHUT KHUB DOST,ACHHA LAGA PADHKAR AND HAPPY NEW YEAR DOST AUR YAHI SHUBHKAMNA HAI KI NAYE SAAL ME BHI AAP YU HI LIKHTE RAHE JISSE HAME AAPKI ACHHI RACHNA HME PADHNE KO MILE.

    "MIRACLE" May 22, 2009 at 9:13 AM  

    ruk kyon gye dost.ab tak to aur rachna padne ko mil jati ham logo ko.

    About This Blog

    जब मन मे कोई तरंग उठती है तो उसे समेटने कि एक छोटी सी कोशिश करता हूँ................

      © Blogger template Newspaper III by Ourblogtemplates.com 2008

    Back to TOP