Wednesday, December 3, 2008

पेड़


खेतों पर बगीचों में
या सड़कों के किनारे,
लगे वृक्ष
कितनें अच्छे लगते हैं,
वनों की तो बात ही और है!
चारों ओर वृक्ष ही वृक्ष हैं।
छोटे बड़े,नये पुरानें
भाँति-भाँति के वृक्षों को देख कर
बड़ी प्रसन्नता होती है।
लेकिन मानवता उन से बेखबर सोती है।

वृक्षों की बात करते ही
उनके लाभ याद आ जाते हैं।
उन की छाया देती है सकून
हमे देते हैं वे फल और फूल
लकड़ी जो हमे पालती है और
अंत में चिता तक साथ देती है।
बदले में भला वह क्या हम से लेती है।
आओ नया वन उगाएं।
इस धरती को स्वर्ग -सा सजाएं।



छोटे-ब
बड

1 comments:

परमजीत सिहँ बाली December 5, 2008 at 10:08 AM  

बहुत बढ़िया कविता है।लिखते रहें।

About This Blog

जब मन मे कोई तरंग उठती है तो उसे समेटने कि एक छोटी सी कोशिश करता हूँ................

  © Blogger template Newspaper III by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP