Thursday, December 20, 2007

कबीर के दोहे

आज कहे काल भजूँगा,काल कहे फिर काल ।
आज काल के करत ही,औसर जासी चाल॥
करत करत अभ्यास के , जड़्मती होत सुजान ।
रसरी आवत जात के, सिल पर परत निसान ॥
आब गई आदर गया,नैनन गया स्नेहु ।
यह तीनों तब ही गए,जब कहा कुछ देहू ॥

1 comments:

परमजीत सिहँ बाली December 21, 2007 at 2:44 AM  

कबीर के दोहे सच में बहुत ही बढिया हैं।लेकिन यदि आप अपन्फ मौलिक रचा लिखे तो और भी बेहतर होगा।

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जब मन मे कोई तरंग उठती है तो उसे समेटने कि एक छोटी सी कोशिश करता हूँ................

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