पेड़
खेतों पर बगीचों में
या सड़कों के किनारे,
लगे वृक्ष
कितनें अच्छे लगते हैं,
वनों की तो बात ही और है!
चारों ओर वृक्ष ही वृक्ष हैं।
छोटे बड़े,नये पुरानें
भाँति-भाँति के वृक्षों को देख कर
बड़ी प्रसन्नता होती है।
लेकिन मानवता उन से बेखबर सोती है।
वृक्षों की बात करते ही
उनके लाभ याद आ जाते हैं।
उन की छाया देती है सकून
हमे देते हैं वे फल और फूल
लकड़ी जो हमे पालती है और
अंत में चिता तक साथ देती है।
बदले में भला वह क्या हम से लेती है।
आओ नया वन उगाएं।
इस धरती को स्वर्ग -सा सजाएं।
छोटे-ब
बड
1 comments:
बहुत बढ़िया कविता है।लिखते रहें।
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